मसूर दाल की कीमत: केंद्र सरकार द्वारा देश में वैश्य समाज को बड़े पैमाने पर बनाने के लिए बड़े स्तर पर समझौता किया जा रहा है। इसके लिए एक तरफ जहां रिजर्व बैंक ने अपनी ब्याज ब्याज दर फरवरी से स्थिर रखी है। वहीं, सरकार ने चावल, प्याज आदि के लिए घरेलू मसालों की खेती पर रोक लगा दी है। इस बीच एक और बड़ी खबर आ रही है. केंद्र सरकार ने मसूर दाल को नियंत्रित करने का बड़ा फैसला लिया है। सरकार ने अंतरराष्ट्रीय बाजार से प्रमुख मसूर दलहन की सतत आपूर्ति सुनिश्चित करने और घरेलू नियंत्रण को बनाए रखने के लिए मसूर दाल (मसूर) पर वर्तमान सक्रिय शून्य आयात शुल्क की समयसीमा को मार्च, 2025 तक बढ़ा दिया है। हालाँकि, सरकार ने तीन कच्चे खाद्य तेलों – पाम तेल, सोयाबीन तेल और सूरजमुखी तेल – पर स्थिर आयात शुल्क ढांचे को सीमाबद्ध नहीं किया है। वित्त मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार, मसूर पर शून्य शुल्क साथ-साथ 10 प्रतिशत कृषि-बुनियादी ढाँचा उपकर की छूट मार्च, 2025 तक बढ़ा दी गई है। मसूर पर यह छूट मार्च, 2024 तक वैध थी।
सिद्धांत नीति पर स्थिर विचार सरकार है
उपभोक्ता मामलों के सचिव रोहित कुमार सिंह ने बताया कि कुछ उत्पादों के उत्पाद हमारे उपभोक्ता नहीं हैं। आस्था नीति की स्थिरता के लिए मसूर पर अंतिम छूट मार्च, 2025 तक बढ़ा दी गई है ताकि उत्पादकों, उद्यमियों को भारत से स्पष्ट स्थिरता मिल सके और वे अपनी स्थिरता की योजना बना सकें। जुलाई, 2021 में मसूर पर मूल ब्याज शुल्क शून्य कर दिया गया था, जबकि फरवरी, 2022 में 10 प्रतिशत कृषि-बुनियादी संरचना उपकर से छूट दी गई थी। तब से, इसे कई बार स्केल किया गया और वर्तमान में यह मार्च, 2024 तक वैध था। वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि केवल शून्य शुल्क और कृषि बुनियाद संरचना उपकर की छूट बढ़ाने के लिए अधिसूचना जारी की गई है, तीन कच्चे खाद्य तेलों के लिए नहीं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा दाल उत्पादक और प्रतिष्ठित देश है। वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान भारत ने 24.96 लाख टन दल्हन का आयात किया था।
भारत के आय में कमी
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, नवंबर में भारत का आंकड़ा 4.33 प्रतिशत आंकड़ा 54.48 अरब डॉलर रहा, जबकि नवंबर 2022 में यह 56.95 अरब डॉलर था। देश का व्यापार घाटा नवंबर में 20.58 अरब डॉलर रहा। चालू वित्त वर्ष 2023-24 की अप्रैल-नवंबर अवधि में 6.51 प्रतिशत हिस्सेदारी 278.8 अरब डॉलर रहा। वहीं, इस अवधि में आय 8.67 प्रतिशत हिस्सेदारी 445.15 अरब डॉलर रही। सचिव वाणिज्य सुनील बर्थवाल ने कहा कि वैश्विक मंदी के बावजूद भारत का अच्छा विकास हो रहा है। तेल आयात में गिरावट का कारण इस अवधि में आय 8.67 प्रतिशत प्रतिशत 445.15 अरब डॉलर रहा। अप्रैल-नवंबर में तेल निवेश 113.65 अरब डॉलर रहा, जो पिछले साल समान अवधि में 139.29 अरब डॉलर था। व्यापार घाटा यानी हिस्सेदारी और शेयरों के बीच का अंतर,-नवंबर में 166.35 अरब डॉलर रहा, जो पिछले साल की इसी अवधि में 189.21 अरब डॉलर था। सचिव वाणिज्य सुनील बर्थवाल ने कार्यशाला से बातचीत में कहा कि वैश्विक स्तर पर उद्घाटन को देखते हुए भारत का संयुक्त अच्छा प्रदर्शन हो रहा है।
(व्यवसाय के भाषा के साथ)